Tuesday, December 29, 2009

ज्वालामुखी

सुरेन्द्र तेतरवाल द्वारा प्रकाशित www.currentgk.tk के लिये All Free Sample Papers, Solved Model Papers, Solved Question Papers, Bank Sample Papers, UPSC Sample Paper, B.Ed Solved Papers, General Awareness Solved Papers, Indian Competitive Exams, Railway Recruitment Board Exams Paper, SSC Sample Paper , CBSE Sample Paper , Employment News , Results etc.

इंसान ने प्रकृति पर विजय पाने के सारे हथियार आजमा लिए हैं। मगर आज भी वह इसमें पूरी तरह से असफल रहा है। प्रकृति आज भी किसी न किसी रूप में इस सृष्टि में अपनी प्रचण्ड ताकत का अहसास कराती रहती है। चाहे वह किसी भयंकर तूफान के रूप में हो या भूकंप या फिर ज्वालामुखी के रूप में। इतिहास गवाह है कि इस पृथ्वी पर ज्वालामुखी पर्वतों ने कई सभ्यताओं को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
इटली की विसुवियस ज्वालामुखी से निकली आग, लावे और धुंए ने दो हजार साल पहले पूरी सभ्यता को ही खत्म कर दिया था। माना जाता है कि यह पर्वत हर दो हजार साल में इसी तरह का रूप दिखाता है। सिसली का माउंट ऐटना भी ज्वालामुखी पर्वत कुछ ऐसा ही है। इसके अलावा भी कई ज्वालामुखी पर्वत अपना मुंह खोले ऐसा ही कुछ करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं। आज भी लाखों इंसान इन ज्वालामुखी पर्वतों के साये में रह रहे हैं। इन पर यह खतरा हर समय मंडराता रहता है। पूरी दुनिया में आज भी कई जीवित ज्वालामुखी पर्वत मौजूद हैं। आज भी वैज्ञानिकों के लिये ये गहरी दिलचस्पी के विषय हैं।
इस पृथ्वी पर जितने भी ज्वालामुखी मौजूद हैं, उनमें से ज्यादातर दस हजार से एक लाख साल पुराने हैं। वक्त के साथ-साथ इनकी ऊंचाई भी बढ जाती है। ज्वालामुखी पर्वत से निकलने वाली चीजों में मैग्मा के साथ कई तरह की विषैली गैसें होती हैं। ये गैसें आस-पास बसे लोगों के लिए काफी घातक होती हैं। इन पर्वतों से निकला मैग्मा एक बहती हुई आग के समान होता है। यह अपने सामने आई हर चीज को पूरी तरह से खत्म कर देता है।
किसी भी जवालामुखी के आग उगलने से पहले कुछ परिवर्तन सामान्य रूप से देखे जाते हैं। इनमें उस जगह के आस-पास मौजूद पानी का स्तर अचानक बढने लगता है। ज्वालामुखी फटने से पहले भूकंप के कुछ हल्के झटके भी आते हैं। इन तमाम बातों के अलावा ज्वालामुखी क्या-क्या तबाही लाने वाला है, इसका संकेत वह स्वयं भी देता है। फटने से पहले इस पर्वत में से गैसों का रिसाव शुरू हो जाता है। गैसों का यह रिसाव इसके मुहाने(मुख) या फिर क्रेटर से होता है। इसके अलावा, पर्वत में कई जगह पैदा हुई दरारों से भी इन गैसों का रिसाव होता है। यह इस बात का संकेत है कि अब इसके आग उगलने का समय आ गया है। इन गैसों में सल्फर-डाई-ऑक्साइड, हाइड्रोजन-डाई-ऑक्साइड, कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड, हाइड्रोजन क्लोराइड आदि प्रमुख होती हैं। इनमें से हाइड्रोजन-क्लोराइड और कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड बेहद खतरनाक होती है। ये वातावरण को काफी प्रदूषित करती हैं। ज्वालामुखी से निकले लावे में कई तरह के खनिज भी होते हैं। ज्वालामुखी पर्वत कई तरह की चट्टानों से बने होते हैं। इनमें काली, सफेद, भूरी चट्टानें आदि शामिल हैं। अमेरिका में एडिस पर्वतमाला को ज्वालामुखी पर्वत श्रृंखला के तौर पर लिया जाता है। हवाई (अमेरिका) में मौजूद कई टापू अपने काली मिट्टी से बने तटों के लिए बेहद प्रसिद्ध हैं। ये तट और कुछ नहीं, बल्कि इन पर्वतों से निकले खनिज ही हैं। ज्वालामुखी जमीन की अथाह गहराई में छिपे खनिजों को एक ही बार में बाहर फेंक देता है। एक अनुमान के मुताबिक अभी तक पूरी दुनिया में करीब 1500 जीवित ज्वालामुखी पर्वत हैं। ज्वालामुखी दो तरह के होते हैं-जीवित और मृत। हमारा हिमालय एक मृत ज्वालामुखी है, इसलिए हमें इससे कोई खतरा नहीं है। मगर दूसरी तरफ माउंट एटना समेत कई अन्य जीवित ज्वालामुखी हैं, क्योंकि इनसे समय-समय पर लावा और गैस निकलती रहती है। ये इंसानी जान के लिए हमेशा से ही खतरनाक रहे हैं। एशिया महाद्वीप पर सबसे ज्यादा ज्वालामुखी इंडोनेशिया में हैं।
ज्वालामुखी न सिर्फ हमारी धरती पर ही मौजूद हैं, बल्कि इनका अस्तित्व महासागरों में भी है। समुद्र में करीब दस हजार ज्वालामुखी मौजूद हैं। आज भी कई ज्वालामुखी वैज्ञानिकों की निगाह से बचे हुए हैं। हाल ही में इंडोनेशिया समेत कई अन्य देशों में आई सुनामी भी एक ज्वालामुखी का ही परिणाम थी। सबसे बडा ज्वालामुखी पर्वत हवाई में है। इसका नाम मोना लो है। यह करीब 13000 फीट ऊंचा है। यदि इसको समुद्र की गहराई से नापा जाए, तो यह करीब 29000 फीट ऊंचा है। इसका अर्थ है कि यह माउंट एवरेस्ट से भी ऊंचा है। इसके बाद सिसली के माउंट ऐटना का नंबर आता है। यह विश्व का एकमात्र सबसे पुराना ज्वालामुखी है। यह 3,5000 साल पुराना है। ज्वालामुखी स्ट्रोमबोली को तो लाइटहाउस ऑफ मैडिटैरियन कहा जाता है। इसकी वजह है कि यह हर वक्त सुलगता रहता है।
ज्वालामुखी से होने वाली तबाही का इतिहास काफी पुराना है। वर्ष 1994 में मरपी नामक ज्वालामुखी फटने से हजारों लोगों की जान गई थी। मरपी का अर्थ है-माउंट ऑफ फायर। अकेले अमेरिका के 48 राज्यों में करीब 40 से अधिक जीवित ज्वालामुखी मौजूद हैं। इन आग बरसाते पर्वतों में अमेरिका का रैनियर प्रमुख है। इसके फटने का अभी तक कोई इतिहास नहीं है, मगर इसके बावजूद यहां से काफी समय से जहरीला धुंआ और गैस बाहर आ रही है, इसलिए यह कभी भी खतरनाक साबित हो सकता है। 1984 में कोलंबिया में ज्वालामुखी के फटने से ही करीबन 25,000 से ज्यादा की जान गई थी। ऐसा ही हादसा 1814 में इंडोनेशिया में हुआ था। यहां पर टम्बोरा ज्वालामुखी के फटने से करीब 80,000 लोगों की जानें गई। 1883 में कारकातोआ ज्वालामुखी के फटने से इंडोनेशिया में ही करीब 50,000 लोगों ने अपनी जान गंवाई। अमेरिका में माउंट लेन के फटने से भी ऐसा ही हादसा पेश आया था। आज भी पृथ्वी पर कहीं न कहीं कोई न कोई ज्वालामुखी अपने होने का अहसास कराता रहता है।
इस पृथ्वी पर जितने भी ज्वालामुखी मौजूद हैं, उनमें से ज्यादातर दस हजार से एक लाख साल पुराने हैं। वक्त के साथ साथ इनकी ऊंचाई भी बढ़ जाती है। ज्वालामुखी पर्वत से निकलने वाली चीजों में मैग्मा के साथ कई तरह की विषैली गैसें भी होती हैं। ये गैसें आस-पास बसे लोगों के लिए घातक सिद्ध होती हैं।

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